Corona badahali
नाई दिल्ली, मौजूदा सामाजिक-आर्थिक असमानता ने भारत में स्वास्थ्य प्रणाली में असमानता बढ़ाई है। अलग-अलग स्वास्थ्य मानकों पर सामान्य श्रेणी से जुड़े लोगों ने अनुसूचित जाति व जनजाति के लोगों से बेहतर प्रदर्शन किया है, हिंदुओं ने मुस्लिमों से बेहतर प्रदर्शन किया है, अमीरों ने गरीबों की तुलना में बेहतर किया है, पुरुषों ने महिलाओं की तुलना में बेहतर प्रदर्शन किया है जबकि शहरी आबादी ने ग्रामीण आबादी की तुलना में बेहतर प्रदर्शन किया है। सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं पर कम ख़र्च और निजी क्षेत्र पर ज्यादा ध्यान देने से असमानता बढ़ी है।
ये बात ऑक्सफैम इंडिया के सीईओ अमिताभ बेहर ने कही। इसके साथ ही श्री बेहर ने कहा कि हमारे विश्लेषण से पता चला है कि मौजूदा सामाजिक-आर्थिक असमानता ने भारत में स्वास्थ्य प्रणाली में असमानता बढ़ाई है। अलग-अलग स्वास्थ्य मानकों पर सामान्य श्रेणी से जुड़े लोगों ने अनुसूचित जाति व जनजाति के लोगों से बेहतर प्रदर्शन किया है, हिंदुओं ने मुस्लिमों से बेहतर प्रदर्शन किया है, अमीरों ने गरीबों की तुलना में बेहतर किया है, पुरुषों ने महिलाओं की तुलना में बेहतर प्रदर्शन किया है जबकि शहरी आबादी ने ग्रामीण आबादी की तुलना में बेहतर प्रदर्शन किया है। सीईओ बेहर ने कहा कि भारत में सार्वजनिक सेवाओं की तुलना में निजी क्षेत्र को अधिक सहयोग देने से वंचितों को ज्यादा नुकसान पहुंचा है। 2004 से 2017 के बीच अस्पताल में भर्ती होने के मामले में औसत खर्च तीन गुना बढ़ा है, जिससे गरीबों और ग्रामीणों की मुश्किलें बढ़ी है।
ऑक्सफैम इंडिया के शोधकर्ता और इस रिपोर्ट के अध्ययनकर्ताओं में से एक अपूर्वा महेंद्रा ने कहा कि हमें जो पता चला है, उसके दो पहलू है. पहला, वे राज्य जो बीते कुछ सालों से असमानताओं को कम करने- जैसे सामान्य श्रेणी और अनुसूचित जाति एवं जनजाति की आबादी के बीच चिकित्सा सुविधाओं तक पहुंच की असमानता को लेकर काम कर रहे हैं, वहां कोरोना के पुष्ट मामले कम हैं जैसे- तेलंगाना, हिमाचल प्रदेश और राजस्थान। दूसरी तरफ जिन राज्यों में स्वास्थ्य पर जीडीपी खर्च अधिक है, जैसे- असम, बिहार और गोवा वहां कोरोना की रिकवरी दर अधिक है।
काबिलेगौर हो कि ऑक्सफैम की जारी रिपोर्ट इनइक्वैलिटी २०२१ इंडियाज इनइक्वल हेल्थकेयर स्टोरी में सामने आया है कि जो राज्य मौजूदा असमानताओं को कम करने का प्रयास कर रहे हैं और स्वास्थ्य क्षेत्र पर अधिक खर्च कर रहे हैं, वहां कोविड-19 के पुष्ट मामले कम हुए हैं। रिपोर्ट में कोरोना महामारी से निपटने में केरल को सबसे बेहतरीन बताया गया है। रिपोर्ट में कहा गया, ‘केरल ने बहुस्तरीय स्वास्थ्य प्रणाली तैयार करने के लिए बुनियादी ढांचे में निवेश किया, जिसे सामुदायिक स्तर पर बुनियादी सेवाओं के लिए फर्स्ट कॉन्टैक्ट एक्सेस मुहैया कराने के लिए डिजाइन किया गया था और बाद में मेडिकल सुविधाएं, अस्पताल बेड और डॉक्टरों की संख्या में भी इजाफा किया गया।
केरल में उच्च आय वर्ग के लोगों और चिकित्सा सुविधाओं तक पहुंच बनाने वाले लोगों को निम्न आय समूह के लोगों की तुलना में अस्पताल या कोविड केंद्रों के कम चक्कर काटने पड़े। निम्न आय वर्ग के लोगों को उच्च आय वर्ग के लोगों की तुलना में कोविड पॉजिटिव पाए जाने पर पांच गुना अधिक भेदभाव का सामना करना पड़ा। अनुसूचित जाति व जनजाति से जुड़े पचास फीसदी से अधिक लोगों को सामान्य श्रेणी के 18.2 फीसदी लोगों की तुलना में गैर कोविड चिकित्सा सुविधाओं तक पहुंच बनाने में दिक्कतों का सामना करना पड़ा है।
रिपोर्ट में बताया गया, ‘कोविड-19 टीकाकरण अभियान ने देश के डिजिटल विभाजन की अनदेखी की है। महामारी की शुरुआत में सिर्फ 15 फीसदी ग्रामीण घरों में इंटरनेट कनेक्शन था। ग्रामीण भारत में स्मार्टफोन यूजर्स शहरी इलाकों की तुलना में लगभग आधे थे। 12 राज्यों की 60 फीसदी से अधिक महिलाओं ने इंटरनेट का कभी इस्तेमाल नहीं किया था। रिपोर्ट में ये बात भी सामने आयी कि 2004 से 2017 के बीच अस्पताल में भर्ती होने के मामले में औसत चिकित्सा खर्च तीन गुना बढ़ा है, जिससे गरीबों और ग्रामीणों को मुश्किल हुई है। अस्पताल में भर्ती होने पर खर्च किए गए प्रत्येक छह रुपये में से एक रुपया उधार के जरिये आया जबकि शहरी आबादी बचत पर निर्भर है। ग्रामीण आबादी कर्ज पर निर्भर है। उधार लेने की यह जरूरत हाशिए पर मौजूद लोगों को चिकित्सा सुविधाओं तक पहुंच बनाने में हतोत्साहित करती है। देश की एक-तिहाई से कम परिवारों को 2015-2016 में सरकारी बीमा योजना में कवर किया गया था।
रिपोर्ट में ये भी सामने आया है कि सार्वजनिक हेल्थकेयर में भारत के कम खर्च ने गरीबों और वंचितों को खस्ताहालत सार्वजनिक चिकित्सा सुविधाएं और महंगी निजी चिकित्सा सुविधाएं इन दो मुश्किल विकल्पों के साथ छोड़ दिया है। हेल्थकेयर की अत्यधिक कीमतों ने कई लोगों को घरेलू संपत्तियां बेचने और कर्ज लेने के लिए मजबूर किया है। हालांकि, संपत्ति की बिक्री में कुछ हद तक कमी आई है लेकिन अकेले स्वास्थ्य लागत बढ़ने से 6.3 करोड़ लोग हर साल गरीबी में धकेले जा रहे है।
इसके अलावा सामाजिक-आर्थिक कारकों ने भी चिकित्सा सुविधाओं तक पहुंच बनाई है। उदाहरण के लिए सामान्य श्रेणी में महिलाओं की साक्षरता दर अनुसूचित जाति की महिलाओं की तुलना में 18.6 फीसदी अधिक और अनुसूचित जनजाति की महिलाओं की तुलना में 27.9 फीसदी अधिक है जिसका मतलब है कि सामान्य श्रेणी की महिलाओं को न सिर्फ उपलब्ध चिकित्सकीय सुविधाओं की बेहतर समझ है बल्कि इन तक बेहतर पहुंच भी है। रिपोर्ट में कहा गया है कि सिखों और ईसाइयों में महिला साक्षरता दर सबसे अधिक 80 फीसदी से अधिक है।इसके बाद हिंदुओं में 68.3 फीसदी और मुस्लिमों में 64.3 फीसदी है।
रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि बाल टीकाकरण में सुधार के बावजूद लड़कियों में टीकाकरण की दर लड़कों की तुलना में कम है। शहरी इलाकों में बच्चों का टीकाकरण ग्रामीण इलाकों के बच्चों की तुलना में अधिक है। अन्य जातियों के मुकाबले अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के लोग टीकाकरण में पीछे है। स्पष्ट है कि महामारी जैसे स्वास्थ्य संकट के दौरान मौजूदा असमानताएं और ज्यादा बढ़ जाती है। सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली में निवेश इतना कम है कि देश में अस्पतालों में बेड की संख्या 2010 में प्रति 10,000 लोगों पर नौ बेड से कम होकर वर्तमान में हर 10,000 लोगों पर सिर्फ पांच बेड रह गई है।
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